उत्तराखंड

संस्था संचालक ने नगर निगम द्वारा की गयी गोशाला की जांच को बताया एक तरफ़ा

देहरादून। बीते दिवस 05 अप्रैल को नगर निगम के महापौर महोदय एवं नगर आयुक्त महोदया द्वारा शंकरपुर गौसदन का औचक निरीक्षण किया गया। इसी क्रम में सोशल मीडिया व समाचार पत्रों के माध्यम से एकपक्षीय खबरें प्रकाशित की गई हैं, जिन पर संस्था निम्नलिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करती है :
पशुपालन विभाग द्वारा प्रति गोवंश रुपये 80 की दर से प्रतिदिन का अनुदान प्रदान किया जाता है, जो केवल उनके भरण-पोषण के लिए ही पर्याप्त होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि एक गोवंश की समुचित सेवा, चिकित्सा, देखभाल एवं भरण-पोषण पर प्रतिदिन रुपये 150 या उससे अधिक की राशि व्यय होती है।
यह उल्लेखनीय है कि नगर निगम द्वारा इस दिशा में कोई अतिरिक्त सहयोग नहीं किया जाता, जबकि शंकरपुर गौशाला में प्रायः नगर निगम द्वारा अधिकतर बड़े सांडों को ही भेजा जाता है। ऐसे सांडों के रखरखाव और प्रबंधन में सामान्य गायों की तुलना में अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे संस्था पर आर्थिक भार और अधिक बढ़ जाता है।
1. गोवंश की संख्या
नगर आयुक्त महोदय के सोशल मीडिया पोस्ट एवं समाचार पत्रों में यह उल्लेख किया गया कि गौशाला में गोवंश की संख्या 450 से कम है। जबकि संस्था द्वारा नगर आयुक्त महोदय से गोवंश की रंग लगाकर गिनती करने के लिए निवेदन किया गया बावजूद इसके संस्था का पक्ष नहीं सुना गया और एकतरफा संख्या प्रकाशित की गई।
31 मार्च व 01 अप्रैल 2025 को राजकीय पशु चिकित्सालय सहसपुर द्वारा 655 गोवंश को मुंहपक्का के टीके लगाए गए थे। इसके पश्चात संस्था द्वारा गूगल कैमरे के माध्यम से प्रत्येक गोवंश की गणना की गई, जिसमें 690 से अधिक गोवंश मौजूद पाए गए। इससे ये साबित होता है की नगर निगम द्वारा एक तरफ़ा जाँच की गयी
2. दवाइयां
संस्था को उपचार के लिए डॉक्टर की व्यवस्था नगर निगम द्वारा की जाती है अधिकतर दवाई भी नगर निगम द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है और संस्था को अधिकतर दवाइयाँ दान स्वरूप प्राप्त होती हैं, जिनमें कुछ शॉर्ट एक्सपायरी वाली भी होती हैं। जो दवाइयां एक्सपायर हो जाती हैं, उन्हें डंप करने के लिए पीछे स्टोर में रखा जाता है। वहीं से कुछ दवाइयाँ उठाकर निरीक्षण में प्रदर्शित की गईं। स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी एक्सपायर दवा उपचार में प्रयोग नहीं की जाती
3. एम्बुलेंस व स्टेचर
नगर निगम द्वारा संस्था को गोवंश उठाने की अनुमति प्रदान नहीं की गई है, जबकि गोवंश को गौशाला तक लाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है।
संस्था के निजी संचालन वाली गौशालाओं में 2 एम्बुलेंस उपलब्ध हैं, जिन्हें आवश्यकता अनुसार शंकरपुर गौसदन में उपयोग किया जाता है।
जहाँ तक स्टेचर का प्रश्न है, संस्था के संज्ञान में नहीं है कि उत्तराखंड के किसी भी राजकीय पशु चिकित्सालय में बड़े पशुओं को उठाने के लिए स्टेचर उपलब्ध है। ऐसे में संस्था को ऐसे किसी भी स्टेचर की जानकारी नहीं है लेकिन फिर संस्था द्वारा अपने स्तर से लोहे से बनवाया हुआ है
4. चारा-पानी की व्यवस्था
गौ सदन में भूसा रखने के लिए स्टोर मौजूद है, जिसमें हाल ही में लगभग 100 क्विंटल भूसा संग्रहित किया गया है।
प्रतिदिन ताजा हरा चारा सुबह और शाम मंगवाया जाता है, जिसका पूरा रिकॉर्ड संस्था के पास उपलब्ध है। लेकिन समाचार पत्रों में भूसे चारे की कमी बताई गई
पानी की नंदों की संरचना नगर निगम के अभियंता द्वारा तैयार किए गए नक्शे के अनुसार की गई है। संस्था केवल निर्मित शेड्स में गोवंश की देखभाल, भरण-पोषण व स्वच्छता का कार्य करती है। निर्माण का कार्य नगर निगम का है
5. चिकित्सा सुविधा
संस्था को समय-समय पर पशुपालन विभाग से सहयोग प्राप्त होता रहा है। सभी आवश्यक टीकाकरण नियमित रूप से कराए जाते हैं। किंतु यह भी सत्य है कि नगर निगम द्वारा नियुक्त पशु चिकित्सा अधिकारी कई 03 माह से गौ सदन में उपचार के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं।
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अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
संस्था को सोशल मीडिया के माध्यम से ज्ञात हुआ कि माला मल्होत्रा द्वारा संस्था के विरुद्ध एक शिकायती पत्र प्रस्तुत किया गया है। यह सर्वविदित है कि माला मल्होत्रा वर्ष 2019 से संस्था को ब्लैकमेल कर रही हैं।
उक्त वर्ष तत्कालीन पशुपालन मंत्री द्वारा एसएसपी महोदय को उक्त महिला के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही के निर्देश दिए गए थे।
ऐसा प्रतीत होता है कि मल्होत्रा द्वारा संस्था से पुनः उगाही करने के लिए एक संगठित षड्यंत्र रचा गया है, जिससे संस्था की छवि को समाज में बदनाम किया जा सके।
संस्था महापौर एवं नगर आयुक्त महोदय से आग्रह करती है कि उक्त प्रकरण की पशुपालन विभाग के माध्यम से निष्पक्ष जांच करवाई जाए, जिससे सत्य सामने आ सके।

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