निनाद 2025 के चौथे दिन हिमाचल और असम की संस्कृति से गुलजार रहा हिमालयन संस्कृति केंद्र

देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह में हिमालयी राज्यों की रंगबिरंगी संस्कृति की बयार बदस्तूर बह रही है। हिमालयन संस्कृति केंद्र गढ़ी कैंट में समारोह के चौथे दिन हिमाचल प्रदेश और आसाम के रंगों से सुबह का सत्र गुलजार रहा। उत्तराखंड साहित्य एवं सांस्कृतिक परिषद की अध्यक्ष मधु भट्ट व संस्कृति निदेशालय के उपनिदेशक आशीष कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके उपरांत हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की सरस्वती सुर समिति के कलाकारों ने शिव स्तुति के साथ अपनी प्रस्तुति की शुरूआत की। लोकगीतों और लोकनृत्यों की शानदार प्रस्तुतियों ने दर्शकों को देर तक बांधे रखा।
सुबह के सत्र का प्रमुख आकर्षण असम रंधाली ग्रुप रहा। कृष्ण वंदना नृथ्य पर पारंपरिक लोकनृत्य बेहद भावपूर्ण रहा। इसके साथ ही बिहू नृत्य से मानो हिमालयन संस्कृति केंद्र में असमिया संस्कृति उतर आई। , लोक वाद्य मीहू ढोल, बांस के विभिन्न फूंक वाद्य और खास तरह की पोशाक में मेखला शॉल जैसी कई खूबियों ने दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। दल की प्रमुख नवा मलिका ने उत्तराखंड संस्कृति विभाग का आयोजन के लिये आभार जाता। उत्तराखंड संस्कृति एवं साहित्य परिषद की अध्यक्ष मधु भट्ट ने मेहमान कलाकारों को स्मृति चिन्ह और शॉल भेंट कर सम्मानित किया।
हिमालयी राज्यों के इस समारोह में हिमालयन हाट के स्टाल खान पान और हस्त शिल्प का केंद्र बने हुए हैं। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के भोरम से सुनीता सोनी अनमोल स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के साथ पहुंची हैं। वे यहां पर पारंपरिक सिड्डू परोस रही हैं। आटे का यह व्यंजन बेहद पौष्टिक और सुपाच्य होता है। इसके अंदर दाल और अखरोट और अन्य ड्राई फ्रूट का मिश्रण डाला जाता है, और अखरोट की चटनी के साथ परोसा जाता है। दाल वाला सिड्डू नमकीन तथा ड्राई फ्रूट वाला मीठा होता है। हिमालयन हाट में पहुंचने वाला हर शख्स एक बार इस स्टॉल पर जरूर रूक रहा है।
निनाद 2025 के चौथे दिन दूसरे सत्र में हिमालय में रंगमंच विषय पर चर्चा हुई। जिसमें जाने माने रंगकर्मी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े श्रीष डोभाल, डॉ.अजय कुमार व डा.एहसान बख्श शामिल हुए। परिचर्चा में उत्तराखंड में रंगमंच की स्थिति पर मंथन किया गया। इस बात पर जोर दिया गया कि रंगमंच की कार्यशालाओं और नाट्य समरोहों के आयोजनों का विस्तार दिया जाए। स्कूलों और कॉलेजों में इसे एक विषय के रूप में शामिल किया जाए। नई पीढ़ी को रंगमंच का महत्व और इस पर की जाने वाली मेहनत से मिलने वाले परिणामों से वाकिफ कराया जाना चाहिए। इस दौरान तीनों दिग्गज रंगकर्मियों ने परिचचर्चा के दौरान रंगमंच को लेकर दर्शकों की ओर से पूछे गए सवालों के जवाब भी दिये।
उत्तराखंड आंदोलन की विरासत को संजोती ‘निनाद 2025’ की अभिलेख गैलरी
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह ‘निनाद 2025’ में इस बार भावनाओं और इतिहास का सुंदर संगम देखने को मिला। इस बार एक अलग सोच के साथ आयोजित इस समारोह ने अपनी सार्थकता साबित की है। जहां एक ओर हिमालयी राज्यों की रंबिरंगी संस्कृति की छटा पूरे परिसर में बिखर रही है, वहीं उत्तराखंड राज्य आंदोलन यादें भी इस समारोह को और ज्यादा यादगार बना रही हैं। हिमालयन संस्कृति केंद्र, गढ़ी कैंट में उत्तराखंड संस्कृति विभाग और राज्य अभिलेखागार द्वारा तैयार की गई फोटो अभिलेख गैलरी ने राज्य आंदोलन की स्मृतियों को फिर से जीवंत कर दिया है।
यह गैलरी उन संघर्षमय दिनों की तस्वीरों, दस्तावेजों और पत्राचारों से भरी है, जिन्होंने उत्तराखंड राज्य के निर्माण की नींव रखी। इसमें आंदोलन के दौरान हुए जुलूसों, धरनों, रैलियों और रणनीतिक बैठकों के दुर्लभ फोटोग्राफ शामिल हैं। वहीं, पृथक राज्य संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं द्वारा तत्कालीन उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकारों के साथ हुए पत्राचार भी प्रदर्शनी का हिस्सा हैं। समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्टों और संपादकीय लेखों के माध्यम से यह गैलरी आंदोलन की वैचारिक यात्रा को भी बखूबी दर्शाती है। इन दस्तावेजों से साफ झलकता है कि यह आंदोलन केवल भूगोल नहीं, बल्कि पहचान, अस्मिता और आत्मनिर्णय की लड़ाई थी।
राज्य अभिलेखागार के निदेशक, आशीष कुमार बताते हैं कि महानिदेशक युगल किशोर पंत की प्रेरणा और दृष्टि से यह गैलरी तैयार की गई है, ताकि राज्य स्थापना दिवस केवल उत्सव नहीं बल्कि आत्ममंथन का अवसर भी बने।
गैलरी में मनोज जखमोला, विनोद सिंह पंवार, जगदीश बोरा और सुशील कुमार जैसे विशेषज्ञ आगंतुकों को दस्तावेजों के संरक्षण की तकनीक और अभिलेखीय महत्व के बारे में जानकारी दे रहे हैं। यह पहल न केवल इतिहास को देखने का अवसर देती है, बल्कि उसे संरक्षित रखने की चेतना भी जगाती है।
कुल मिलाकर, ‘निनाद 2025’ की यह अभिलेख गैलरी उत्तराखंड आंदोलन की स्मृतियों को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का सार्थक प्रयास साबित हो रही है कृ जहां संघर्ष की तस्वीरें प्रेरणा बनकर झिलमिला रही हैं।




